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श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना महोत्सव, दिखावें की आराधना सफलता नहीं देती – भावी आचार्य ऋशभचन्द्रविजयजी …

श्री मोहनखेड़ा तीर्थ/ राजगढ़। हमारी समस्त साधना आराधना निर्वाण के मार्ग की और अग्रसर करने वाली होती है आराधक आराधना में तभी आगे बढेगा जब उसे आराधना से होने वाले लाभ की जानकारी होगी । जिसे जानकारी होती है वही मन लगाकर एकाग्रचित्त होकर धर्म आराधना के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है । निर्वाण के मार्ग पर आगे बढ़ने वाले जीव दो प्रकार के होते है । देश विरती दूसरा सर्व विरती संसार में रहने वाली आत्माऐं देश विरती एवं साधु संत सर्व विरती श्रेणी में आते है । श्रावक को आगार होते है साधु संतों को आगार नहीं होता हर कार्य की सीमा होती है । कपड़े पहनलेने मात्र से कोई संत नहीं बन जाता वह वृति नहीं होता है । व्रत धारण करने वाला वृति होता है जिसके ह्रदय में शल्य नहीं हो, मित्थात्व, लोभ नहीं हो वह वृति होता है । मित्थात्व भी बहुत बढ़ा शल्य है । उक्त प्रेरणादायी बात भावी आचार्य ज्योतिष सम्राट श्री ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा. ने शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना के आराधकों को बतायी और कहा कि जीवन में नियम लो या ना लो पर यदि नियम को व्यक्ति संसार में रहकर मन से धारण कर लेता है वह वृति की श्रेणी में आ जाता है । संसार में रहकर व्यक्ति माया रहित रहकर मन से वृति बन सकता है । दिखावें की सामायिक करने से आराधक को लाभ प्राप्त नहीं होता है । सामायिक में व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर अपना ध्यान प्रभु भक्ति में ही रखे तभी उसकी सामायिक सफल होगी । व्यक्ति सामायिक कर रहा है और घर में चल रहे या व्यवहार के कामों में दिमाग का उपयोग कर रहा है तो वह सामायिक निष्फल हो जायेगी । इस अवसर पर मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कहा कि लोग अपने जीवन में भोतिक सुख साधनों की अपेक्षाओं एवं संसार के सुख पाने के लिये देवी देवताओं के पीछे भागते है पर संसार में कोई भी देवी देवता किसी भी इंसान को सुखी या दुखी नहीं कर सकते है यदि इंसान को दुखी या सुखी करता है वह उसके कर्म होते है जैन दर्शन कर्म प्रधान है हम अपने जीवन में जैसे कर्म करेंगे फल भी उसी कर्म के अनुसार प्राप्त होगा । यदि हम बुरे कर्म करते है तो हमें दुखी होना पडेगा यदि अच्छे कर्म किये तो हमें कोई संसार की ताकत दुखी नहीं कर सकती है ।
    दादा गुरुदेव की पाटपरम्परा के सप्तम पटधर गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय रवीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती भावी गच्छाधिपति आचार्यदेवेश प.पू. ज्योतिष सम्राट श्री ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा., कार्यदक्ष मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री प्रितीयशविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा., तपस्वीरत्ना साध्वी श्री  किरणप्रभाश्री जी म.सा. साध्वी श्री सद्गुणाश्री जी म.सा. आदि ठाणा की पावनतम निश्रा में श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट के तत्वाधान में श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ पर नवदिवसीय नवपद आराधना ओलीजी का भव्य आयोजन चल रहा है । इस आयोजन में 1200 से अधिक आराधक आयम्बिल तप के साथ तीर्थ पर धर्म आराधना कर रहे है इस भीषण गर्मी में सभी तपस्वी तपस्या के साथ सिद्धचक्र की आराधना के साथ तपस्या में लीन है । साथ ही मुनिभगवन्तों द्वारा ओलीजी आराधना के तपस्वीयों को श्रीपाल मयणासुन्दरी के रास पर आधारित प्रवचन का श्रवण कराया जा रहा है ।

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