Homeआलेखआलेख - गौरक्षा में हिंसा, कहीं साजिश तो नहीं...?

आलेख – गौरक्षा में हिंसा, कहीं साजिश तो नहीं…?

सुरेश हिन्दुस्थानीप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका चिन्ता करना स्वाभाविक भी है। क्योंकि आज गाय के नाम पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा वातावरण खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। प्राचीन काल में भी ऐसे अनेक उदाहरण देखे व सुने जाते हैं कि गाय को ढाल बनाकर हिन्दू समाज को समर्पित करने को मजबूर किया जाता रहा है। वर्तमान में गौरक्षा के नाम पर जो चल रहा है, उसको लेकर गंभीरता दिखाने के प्रयास होने चाहिए। इस बात की भी जांच होना चाहिए कि कहीं यह कोई बहुत बड़ी साजिश तो नहीं है? अगर यह साजिश है तो भारतीय समुदाय को सचेत होने की जरुरत है। कहीं यह पूरा खेल वातावरण को प्रदूषित करके देश को बदनाम करने का हिस्सा तो नहीं है। हो सकता है कि यह विदेशी साजिश भी हो।





वास्तव में भारत में गाय की महिमा को ध्यान में रखकर सनातन काल से ही गौरक्षा की जाती रही है। आज गौरक्षा कोई नया विषय नहीं है। आज गौरक्षा विषय को विवादित करने का जो अभियान चल रहा है, उसके पीछे छिपे भाव को समझना बहुत जरुरी है। यह बात सही है कि कई लोग गाय को माता कहते हैं तो इसके प्रति उनके कुछ भाव भी होंगे। इसी भाव को लेकर लोग गौरक्षा भी करते हैं। कई स्थानों पर चल रही गौशाला इसका उदाहरण हैं। इसके विपरीत कुछ असामाजिक तत्व भारतीयता को समाप्त करने का दुष्चक्र चलाकर गौमाता को समाप्त करने का खेल खेल रहे हैं। भारत में कथित बुद्धिजीवी इस अभियान को हवा देने का काम कर रहे हैं। वास्तव में यह मामला इतना बड़ा नहीं है जितना तूल दिया जाए, लेकिन देश को बदनाम करने की नीयत से इस प्रकार की विसंगतियों को तूल देना किस प्रकार की मानसिकता का परिचय दे रहा है। क्या भारत वास्तव में हिंसक है? फिर क्यों भारत को हिंसक के रुप में प्रचारित किया जा रहा है। हो सकता है कि यह पूरा मामला हिन्दू समाज को हिंसक बताने के लिए किया जा रहा हो, जबकि यह सत्य नहीं है। इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि जब हिन्दू समाज गौ को माता का दर्जा देता है तब उसकी हत्या करने का प्रयास क्यों किया जाता है। क्या गौ हत्या रोकने का काम प्रशासन का नहीं है। अगर प्रशासन अपना कर्तव्य सही तरीके निभाए तो ऐसे हिंसा के काम रोके जा सकते हैं।
वर्तमान में गौरक्षा को लेकर ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि जिससे गौरक्षक समाज गौरक्षा करना ही छोड़ देगा। हालांकि यह बात सच है कि कानून हाथ में लेने का किसी को भी अधिकार नहीं है, कानून अपना काम करता है, लेकिन जिस प्रकार से देश में हिन्दुओं के श्रद्धा प्रतीकों पर कुठाराघात के मामले सामने आ रहे हैं, उससे यही लगता है कि गौमाता को समाप्त करने का सुनियोजित अभियान चल रहा है। हम यह जानते हैं कि गौमाता पुरातन काल से हिन्दू समाज के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक रही है, वहीं समाज में गौमाता के प्रति यह भी शाश्वत धारणा है कि गौमाता में तेतीस करोड़ देवी देवताओं का वास है। इसी कारण हिन्दू समाज गौमाता को केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी मानता है। अगर इस भाव को लेकर हिन्दू समाज गौ की रक्षा करता है तो यह एक अच्छा भाव कहा जा सकता है। इसके विपरीत कोई अन्य समाज गाय की हत्या करता है या उसे हत्या करने के लिए खरीदता है तो स्वाभाविक रुप से गौभक्त समाज को यह बुरा लगेगा। भारत के बहुत बड़े समाज की आराध्य गौमाता के बारे में जहां गौभक्त समाज को उसकी रक्षा के बारे में चिन्तन करना चाहिए, वहीं वैमनस्य फैलाने का प्रयास करने वाले समाज को भी हिन्दुओं की भावना का सम्मान करना चाहिए। इस मामले में हमारे प्रधानमंत्री की चिन्ता ध्यान देने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा है कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी सहन नहीं की जाएगी। यह बात उन्होंने गुंडागर्दी करने वाले असामाजिक तत्वों के बारे में कही है, जिसे रोके जाने की जरुरत है, लेकिन यह सच है कि सच्चा गौसेवक कभी गुंडागर्दी कर ही नहीं सकता। वह गौमाता के प्रति श्रद्धा भाव तो रखता ही है, साथ ही सच्चे अर्थों में उसकी रक्षा करता है और जो गाय को काटता है, उससे बचाने का प्रयास करता है, यह उसे करना भी चाहिए।
हालांकि गौरक्षा का यह प्रयास पहली बार नहीं हो रहा, भारत में गौरक्षा बहुत पहले से की जाती रही है। यहां तक कि गौहत्या करने वाले के हाथ तक काटने का विधान रहा है। कई मुगलकालीन शासकों के राज में गौरक्षा के लिए कठोर कानून बनाए गए थे, गौभक्त राजा दिलीप ने सिंह से गौमाता की रक्षा की। वास्तव में गाय की रक्षा करना जहां हिन्दू समाज का कर्तव्य है, वहीं अन्य समाज को भी इस मामले में आगे आना चाहिए। क्योंकि गाय सबका हित करने वाली है। विज्ञान ने भी इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि गाय का दूध और गौमूत्र अत्यंत लाभकारी है, इससे कई बीमारियां दूर की जा सकती हैं। इसलिए समस्त समाज को गौरक्षा के बारे में प्रयास करना चाहिए, जिससे हम समाज और पूरे विश्व की भलाई करने का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हम यह भी जानते हैं कि गाय का दूध प्रत्येक धर्म के मानव के लिए गुणकारी है, जो किसी भी मानव का धर्म नहीं पहचानता। गौरक्षा के नाम पर हो रही गुंडागर्दी के मामलों को पूरी गहराई से देखने की आवश्यकता है कि कहीं इसके पीछे देश विरोधी ताकतों का हाथ तो नहीं। 1980 के दशक में गौहत्या के कारण दो साम्प्रदायों में टकराव की स्थिति पैदा की गई थी। देश में विरोधी ताकतें भारतीयों की इस कमजोरी से भलीभांति परिचित हैं कि गाय का धार्मिक महत्व होने के चलते लोगों में मतभेद पैदा करना आसान है। सरकार को इस मामले में पूरी तरह चौकसी बरतनी होगी। साथ ही शरारती तत्वों के खिलाफ कार्रवाही में देरी नहीं करनी चाहिए। दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों को इस नाजुक मामले पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। अगर राजनीति की गई तो कहीं न कहीं गौरक्षा का विषय अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगा।


सुरेश हिन्दुस्थानी
102 शुभदीप अपार्टमेंट, कमानीपुल के पास
लक्ष्मीगंज, लश्कर ग्वालियर मध्यप्रदेश
पिन-474001
मोबाइल-9425101815
9770015780

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

error: Content is protected !!