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परिवार व समाज की एकता का पर्व दिवाली…

सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत के त्यौहारों की विशेषता यह है कि यह सामाजिक एकता के अनुपम आदर्श हैं। इसी भाव के साथ प्राचीन काल से यह पर्व हम सभी मनाते चले आ रहे हैं। वर्तमान में पर्वों का यह शाश्वत भाव आज भी प्रचलन में है। हम देखते हैं कि आजीविका के लिए घर से दूर रहने वाले कई व्यक्ति त्यौहारों को अपने घर और समाज के साथ ही मनाता है। दीपावली के त्यौहार पर भी ऐसा ही स्वरुप दिखाई देता है। भारतीय आवागमन के साधनों में त्यौहारों पर बढ़ती भीड़ इसका साक्षात्कार भी करा रही है। वास्तव में भारतीय त्यौहार आज भी परिवार और समाज के एकत्रीकरण का ही त्यौहार है। दूर रहने वाले लोग भी त्यौहार के अवसर पर अपने घर जाकर ही त्यौहार मनाते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि आधुनिकता वातावरण में भी दीपावली पर्व अपनी परंपराओं को जीवंत बनाए हुए है। देश की कई संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले मिलन कार्यक्रम भी दीपावली को सार्थकता प्रदान कर रहे हैं। दीपावली का पावन पर्व पूरे देश में एक ही दिन मनाया जाता है, जो देश की सांस्कृतिक का दर्शन कराता है। यही विविधता में एकता का आदर्श है।
भारत में दिवाली का अलग ही महत्व है। वैसे तो भारत का प्रत्येक पर्व प्रकृति और संस्कृति से गहरा सामंजस्य रखते हैं, लेकिन वर्तमान में इन त्यौहारों पर हम अपनी शाश्वत परंपराओं को लगभग भुलाने की मुद्रा की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। वास्तव में प्राकृतिक वातावरण से तालमेल स्थापित करने के लिए ही भारतीय त्यौहार मनाए जाते हैं। इन त्यौहारों में संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करने का संदेश समाहित है। हम कहते हैं कि संस्कृति और प्रकृति के विरुद्ध किया जाने वाला प्रत्येक कदम अपने स्वयं के लिए विनाशकारी होता है। इसलिए सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करने वाले इन त्यौहारों की मानवीय जीवन में भी खास अहमियत है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे पूर्वजों ने भी यह माना है कि प्रकृति पूज्य है, जीवन दायिनी है। हमारी प्रकृति ही हमारी संस्कृति है। इसलिए हमारे सांस्कृतिक त्यौहार भी प्रकृति प्रदत्त हैं। जो प्रकृति प्रदत्त है उसकी सुरक्षा करना हमार नैतिक दायित्व है, क्योंकि प्रकृति हमारे संपूर्ण जीवन को हमेशा ही देती है। इसलिए हमारा दायित्व भी बढ़ जाता है। वर्तमान में हमारा प्राकृतिक स्वभाव समाप्त होता जा रहा है यानी हम लेने की प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं।
वर्तमान में प्राय: एक बात सबके मुख से सुनी जाती है कि हमारे त्यौहार पहले जैसे नहीं रहे। क्या हमने कभी इस बात पर चिंतन किया है कि ऐसी अवस्था क्यों आई। इसका मूल कारण क्या है। इसके लिए हम ही दोषी हैं। सामाजिक एकत्रीकरण के लिए मनाए जाने वाले त्यौहारों को हमने ही दीवालों में कैद कर लिया है। हम क्यों नहीं त्यौहारों को समाज का हिस्सा बनाते हैं? वास्तविकता यह है कि आज हम अकेले में ही त्यौहारों का आनंद लेने का निरर्थक प्रयास करते दिखाई देते हैं। लेकिन अकेले में त्यौहार का आनंद वैसा कभी नहीं मिल सकता, जो पहले था। इसलिए हमें अपने त्यौहारों को सामाजिकता की ओर ले जाने की ओर अग्रसर होना पड़ेगा, तभी त्यौहारों की सार्थता है और तभी दीवाली की सार्थकता है।
भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का अलग ही महत्व है। वर्ष भर होने वाले छोटे बड़े त्यौहार हमारे समाज को धर्म और संस्कृति से जोड़े रखते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से ही एक त्यौहार है दीपावली। दीपावली का त्यौहार जिसे हम प्रकाश का त्यौहार कहते हैं। आज क्या यह प्रकाश का त्यौहार रह गया है। हम सभी बाहर तो प्रकाया की व्यवस्था कर देते हैं, लेकिन हमने अपने हृदय में कितना प्रकाश किया है। हम आंतरिक रुप से आज भी अंधेरे का हिस्सा हैं। आज के दौर में जिस प्रकार से सामाजिक विषताएं पनप रही हैं, वह इसी अंधकार रुपी जीवन का हिस्सा हैं। दीवाली पर्व बाह्य जगत को प्रकाशित करने के साथ आंतरिक रुप से प्रकाशित होने की भी प्रेरणा भी देता है। यह प्रेरणा ही हमारे जीवन का पथ आलोकित करती है। हम केवल शब्दों के द्वारा शुभकामनाएं देकर एक दूसरे का पथ आलोकित करने की बात तक ही सीमित होते जा रहे हैं। जिनके मन में ज्ञान का दीपक नहीं जला, उसे शुभकामनाएं देने का कोई अधिकार नहीं है।
वास्तव में दीपावली का त्यौहार प्रकाश का त्यौहार होने के साथ साथ हमें हमारे अपनों को हमारे करीब आने का त्यौहार भी है। क्योंकि हमारे अपने दूर होने के बाद भी इस त्यौहार पर अपने घर आते हैं, जिससे कहा जाता है कि यह ऐसा त्यौहार है, जो अपनों की दूरी को समाप्त करता है। दीपावली के त्यौहार से जुड़ी एक किदवंती है कि अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम जब लंका पर विजय करके लौटे थे, तब अयोध्या में उनके स्वागत में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर आनंद का उत्सव मनाया गया था, उसी आनंद और उत्साह का प्रदर्शन करते हुए हमारे देश में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन वर्तमान में आधुनिकता के दौर में कार्यों के चलते लोग एक दूसरे से दूर रहने या दूसरे शहरों में रहने के लिए मजबूर होते हैं, लेकिन जब दीवाली का त्यौहार आता है तो वह व्यक्ति चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो अपनों के निकट आने का हर संभव प्रयास करता है। तो यहां हम कह सकते हैं कि दीवाली एक ऐसी डोर है जो हमें हमारे अपनों से जोड?े का काम करती है।
दिवाली जहां अपनों को समीप लाती है, वहीं जो लोग समयाभाव के कारण नहीं मिल पाते हैं, उनको भी मिला देती है। हम जानते हैं कि दिवाली पर कहीं कहीं दिवाली मिलन के कार्यक्रम होते हैं, जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देने का ही काम करते हैं। इसके अलावा दिवाली के पर्व पर एक दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं प्रदान कर दिवाली मिलन जैसा ही कार्यक्रम बन जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि दिवाली मात्र पटाखे छोड?े का त्यौहार नहीं है, सभी को करीब लाने का भी त्यौहार है।
अब बात की जाए स्वास्थ्य की तो वर्षभर या किसी अन्य त्यौहार पर लोग अपने घरों की सफाई करें या न करें, लेकिन दीवाली के आने से पहले अपने घरों की साफ सफाई जरूर करते हैं। लिपाई-पुताई करते हैं और अपने घर को सजाने के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग भी करते हैं। इसके कारण घरों पर नई आभा बिखर जाती है, पूरा घर नया सा दिखने लगता है। दीपाली के दौरान होने वाली साफ -सफाई घर में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यही सकारात्मकता व्यक्ति के जीवन में तमाम खुशियों का संचार करती है। यह सच है कि पूरे घर की सफाई कभी नहीं होती, लेकिन दिवाली एक ऐसा त्यौहार है, जब पूरे घर के कौने कौने की सफाई हो जाती है। कुल मिलाकर दीवाली स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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