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कानवन में समरसता यज्ञ का हुआ समापन, 101 जोड़ो ने समरस भाव से यज्ञ में दी आहुतियां, सनातन धर्म एक हैं उसको जातियों में ना बांटे – सुश्री गायत्री दीदी

कानवन। कल का दिन कानवन वासियो के लिए बड़ा है अविस्मणीय रहा। सात दिनों से चल रही भागवत कथा के विश्राम पर भक्तो की भारी भीड़ थी। जहाँ एक ओर खुशियाँ ओर उत्साह था तो वही एक टीस भी की कल से यह सब कुछ हमे देखने सुनने को नही मिलेगा। भगवा पताकाओं से सजे पाण्डाल के निकट ही अंतिम दिवस पर पूर्णाहुति यज्ञ का भव्य पाण्डाल बनाया गया था जहाँ सुबह से 101 जोड़े समरस भाव से यज्ञ में आहुतियां दे रहे थे। अधिकांश जोड़े पहली बार यज्ञ में बैठे थे जिनके लिए यज्ञ की अनुभूति ही अलग थी।

कथा में सुश्री गायत्री दीदी ने बताया कि सनातन धर्म एक हैं उसको जातियों में ना बांटे। वर्ण व्यवस्था को शरीर के अंगों से जोड़ते हुए बताया कि ब्राह्मण मस्तिष्क, क्षत्रिय भुजा, वैश्य पेट(उदर) तो शुद्र है, जिस प्रकार मनुष्य के लिए इन चारों अंगों का होना महत्वपूर्ण है उसी प्रकार सनातन धर्म मे हम सभी जातियाँ का होना महत्वपूर्ण है। हम इनमे से किसी से भेद नही कर सकते। हम बिना पैरों के चल भी नही सकते और नही बिना मस्तिष्क के कोई क्रिया भी नही। इस हेतु हमें छोटे-बड़े के भेद से ऊपर उठकर समानता (समरसता) का भाव रखना चाहिए। अन्यथा इस शरीर के टुकड़े होने में देर नही लगेगी। फिर आपका गौरव अभिमान सब धरा के धरा रह जायेगा।  इस आयोजन की महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस आयोजन को करने वाली समिति संघ के स्वयंसेवक ना होते हुए भी उन्होंने इस विषय को अपनाया और अपनी पूर्ण सहमति ओर प्रयास से सफल बनाया।

कथा विश्राम पर विभाग धर्मजागरण संयोजक गोपाल शर्मा ने बताया कि हमारे यहाँ वैदिक काल से कभी भी जाति को आधार बनाकर किसी को पूजा यज्ञ हवन से दूर रहना नही रखा ,हम सभी को समान भाव रख कर समाज को मजबूती देना चाहिए।

कथावाचक बलविदुषि सुश्री गायत्री दीदी का जिनके मार्गदर्शन में पूरा कानवन गाँव ॐमय ओर समरसतापूर्ण हुआ।
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