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पेटलावद – 70 साल बाद भी आदिवासी वर्ग पानी के लिए तरसने को मजबूर, प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के चलते माही क्षेत्र में भी पानी का अकाल

गोपाल राठौड़, पेटलावद। ग्रीष्म ऋतु ने अभी दस्तक भी नहीं दी है कि क्षेत्र में पानी के अकाल ने पहले से ही दस्तक दे दी है कहने में तो यह माही क्षेत्र कहलाता है लेकिन प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के चलते माही क्षेत्र में भी पानी का अकाल पड़ने लगा है ।
फरवरी माह चल रहा है अभी जून-जुलाई की गर्मी कोसों दूर है जिसके पूर्व ही गांव में जून-जुलाई जैसे हालात पैदा हो गए हैं इसका प्रमुख कारण जनपद पंचायत के कर्मचारी अधिकारी एवं पीएचई विभाग की घोर लापरवाही है ।जो केवल कागजों में ही क्षेत्र को लाभ पहुंचा रहे हैं,  यदि जमीनी हकीकत देख ली जाए तो स्थिति इसके विपरीत मिलती है ।
पेटलावद जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत मातापडा  में इन दिनों ऐसे ही हालात बने हुए हैं , पानी के लिए लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं । पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं , यहां तक की पैसों से पानी खरीदा जा रहा है और रात में पानी पर ताला लगाकर रखा जा रहा है । यह नहीं कि गांव में सरपंच नहीं है जनप्रतिनिधि नहीं है सचिव नहीं है सभी है और सभी अपने अपने कार्य में व्यस्त है । उन्हें गांव में पानी का अकाल से कोई लेना देना नहीं है ना ही जल व्यवस्था को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कई योजना पेयजल के लिए ही बनाई गई है और खास तौर पर आदिवासी अंचल के ग्रामीण क्षेत्र में लेकिन फिर भी अभी तक गांव की स्थिति बिगड़ी हुई है । अभी भी लोग उसी तरह से पानी को तरस रहे हैं जैसे कि 70 साल पहले लोग पानी के लिए तरसते थे ।
गांव में 15 सौ से अधिक  की जनसंख्या की आबादी है 500 से अधिक मकान बने हुए हैं 7 से अधिक हैडपम्प खुदाई किए जा चुके हैं , कुए बने हुए हैं लेकिन बावजूद बिना रखरखाव के सातो हैडपम्प ने भी साथ छोड़ चुके हैं कुएं में साफ पानी नहीं है जिस कारण गांव के लोग गांव से 2 किलोमीटर दूर पैदल , साईकिल या मोटरसाइकिल से पानी लाने को मजबूर है यह तो भला हो उस गांव के बालू भाई पाटीदार का जिसका प्राइवेट होल  है और गांव में सभी ग्रामीणों को पानी की व्यवस्था करता है ।पूरे वर्ष वही व्यक्ति पूरे गांव को पानी पिलाता है लेकिन जून-जुलाई में उनका भी प्राइवेट होल सूख जाता है गांव में अकाल पड़ने जैसा माहौल हो जाता है और पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है, पूरा पूरा दिन दिनचर्या के पानी की व्यवस्था में लग जाता है जिससे महिलाओं के कामों में और बच्चों की पढ़ाई पर खासा बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रधानमंत्री स्वच्छता मिशन के अंतर्गत गांव में शौचालयों का निर्माण किया गया है लेकिन उन शौचालय को गांव वालों ने अभी तक शुरुआत नहीं की है , क्योंकि शौचालय में शौच करने से एक से ज्यादा बाल्टी पानी खर्च होता है और इतना पानी गांव वाले 2 किलोमीटर दूर से लाने में असमर्थ है , अभी तक तो गांव वाले पीने व दिनचर्या के पानी की व्यवस्था भी नहीं कर पा रहे हैं तो शौचालय के लिए पानी की व्यवस्था कब करेंगे ।

ग्रामीण के कथन 
1 गोपाल भूरिया का कहना है कि गांव में पानी की समस्या आज की नहीं बल्कि कई वर्षों पुरानी है और इस गांव में पेयजल व्यवस्था को सुधारने हेतु सरपंच सचिव भी कोई उचित कदम नहीं उठाते। जनपद सीईओ ग्रामीण क्षेत्र में ध्यान ही नही देते हैं।
2 मुकेश मीणा का कहना है कि हमें पीने के पानी के लिए 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है गांव में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है पानी के लिए हमें दिन दिन भर इधर उधर भटकना पड़ता है यदि प्रशासन ध्यान दें तो गांव में पानी की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है।
3 अमृत गामड़ का कहना है कि हमने सरपंच सचिव से पानी की किल्लत को लेकर कई बार चर्चा की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । शायद हम गरीब आदिवासी वर्ग को यूं ही तरस तरस के मरना ही किस्मत में लिखा है। 
4 बालू भाई पाटीदार का कहना है कि जब तक मेरा प्राइवेट होल चलता है तो मैं पानी की व्यवस्था ग्रामीणों के लिए करता हूं लेकिन जून-जुलाई की भीषण गर्मी में मेरे होल पर भी पानी टूट जाता है और पानी की समस्या बढ़ जाती है , गांव के सरपंच सचिव यदि इस गंभीर विषय पर ध्यान दें तो पानी की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है  ।
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