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धुलेट – किस्मत बदल जाती हैं भागवत में आने से, सावरे भी मिल जाते हैं भागवत मैं आने से – कथावाचक पंडित प्रवीण शर्मा

विनोद सिर्वी, धुलेट। प्रमुख कथावाचक पंडित प्रवीण जी शर्मा ने मारवाड़ा मेवाड़ा  प्रजापति समाज द्वारा आयोजित  संगीतमय  भागवत कथा के छठे दिन पंडित शर्मा ने  लोगों को भागवत कथा के महत्व और इसके श्रवण से मनुष्य को मिलने वाले धार्मिक लाभ के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि सच्चा सुख केवल भगवान के चरणों में है। भगवान के सम्मुख और उनके शरणागत होने को ही भागवत कथा है। भागवत कथा से कल्याणकारी और कोई भी साधन नहीं है इसलिए व्यस्त जीवन से समय निकालकर कथा को आवश्यक महत्व देना चाहिए। भागवत कथा से बड़ा कोई सत्य नहीं है। भागवत कथा अमृत है। इसके श्रवण करने से मनुष्य अमृत हो जाता है। यह एक ऐसी औषधि है जिससे जन्म-मरण का रोग मिट जाता है। भागवत कथा को पांचवां वेद कहा गया है, जिसे पढ़ सकते हैं और सुन सकते हैं। भागवत कथा गंगा है और पार करने वाली है। श्रीमद् भागवत कथा चरित्र शुद्ध करने का मंत्र है। यह भगवान की वाणी है और इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती का मुख भी यही है। मृत्यु का भय दूर करने वाला ग्रंथ है। प्रेत और पीड़ा को दूर करने वाला है। परमात्मा से अनुभूति कराने वाला है। लोक परलोक दोनों को सुधारने वाला है, पापों को नष्ट करने वाला है। श्रीमद् भागवत भगवान का स्वरूप है। इसके सुनने से 17 पुराणों का फल मिलता है। शर्मा ने कहा कि सही और गलत का निर्णय करने को ही ज्ञान कहा जाता है। मेरा कोई क्या कर लेगा, यह अहंकार और अभिमान है। बुद्धि धुंधली होगी तो सही गलत का निर्णय नहीं हो सकता है। मां का दर्जा दुनिया में सबसे ऊंचा है। मां जैसा रिश्ता इस दुनिया में और कोई नहीं है और मां के दिल जैसा भी और कोई नहीं है। किस्मत बदल जाते हैं भागवत में आने से, सावरे भी मिल जाते हैं भागवत मैं आने से……. भजन पर भक्तजन नाचे। और कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मिणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। उन्होंने श्री कृष्ण मथुरा गमन और श्री रुक्मिणी विवाह महोत्सव प्रसंगों पर विस्तृत विवरण दिया।

  रुक्मिणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर व्याख्यान करते हुए उन्होंने कहा कि रुक्मिणी के भाई  ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ निश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगी। उन्होंने कहा कि शिशुपाल असत्य मार्गी है और द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण सत्यमार्गी है इसलिए वो असत्य को नहीं सत्य को अपनाएंगी। अत: भगवान श्री द्वारकाधीश जी ने रुक्मिणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया।

 रुक्मिणी विवाह प्रसंग पर आगे कथा वाचक ने कहा कि इस प्रसंग को श्रद्धा के साथ श्रवण करने से कन्याओं को अच्छे घर और वर की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखद रहता है। इस पावन प्रसंग के दौरान दान की विशेष महिमा है। कल कथा के समापन के दौरान महा आरती व भागवत जी उठाने की बोली प्रजापति समाज द्वारा लगाई गई। जिसमें मुन्ना लाल प्रजापति दलपुरा द्वारा महा आरती करने तथा रामलाल प्रजापत द्वारा भागवत कथा उठाने की बोली लगाई गई। इसके पश्चात महा आरती के बाद महाप्रसादी का वितरण किया गया बड़ी संख्या में ग्रामीण व समाज जन मौजूद रहे।

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