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श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ चातुर्मास 2018 : पर्युषण महापर्व प्रथम दिन, पर्युषण एक अलौकिक पर्व है – आचार्य ऋषभचन्द्रसूरिजी

राजगढ़। दादा गुरुदेव की पाटपरम्परा के अष्ठम पट्टधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि देवताओं को पुण्य का बंधन होता है इसलिये वे व्रत, नियम, तप नहीं कर सकते है । सिर्फ मनुष्य योनि में ही धर्म क्रिया व्रत नियम और तप करना सम्भव है । प्रभु के कल्याणक, ओली आराधना, पर्युषण पर्व ये सब लौकोत्तर पर्व माने जाते है । लौकिक पर्व व्यक्ति भय के कारण मनाता है पर अलौकिक पर्व मनाकर व्यक्ति अपनी आत्मा को धर्म क्षेत्र में लगा लेता है । प्रभु की वाणी परोपकार के लिये है। पर्युषण पर्व के दौरान छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखते हुये जीव हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिये। श्रावक के कर्तव्य को जीवन में उतारना चाहिये । लौकोत्तर पर्व आत्मा के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। प्रवचनकार मुनिराज श्री पुष्पेन्द्रविजयजी म.सा. ने आराधकों से कहा कि पर्युषण पर्व में पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये व्यक्ति प्रयत्न करता है पर मुक्ति वही प्राप्त कर सकता है जिसने स्वयं को उपासना में लगा लिया है । यह पर्व कर्मा से मुक्ति दिलाने का सर्वोत्तम पर्व माना गया है । अष्टान्हिका प्रवचन धर्म के क्षेत्र का सर्वोत्तम संविधान है पर इसके बनाये गये नियमों को हमने अभी तक अंगीकार नहीं किया । श्रावक तीन प्रकार के होते है। सदैया, कदैया और भदैया । सदैया श्रावक हमेशा धर्म आराधना में लगे रहते है, कदैया श्रावक यदाकदा ही धर्म ध्यान करते है पर भदैया श्रावक सिर्फ भादवा माह में ही वर्ष में एक बार भूले भटके आराधना कर लिया करते है । हमेशा सदैया श्रावक बनने का प्रयास करें । जिसके भीतर अभयदान की भावना आ गयी तो यह मान लेना कि धर्म जीवन में प्रवेश कर गया है । जहां पर वात्सल्य है वही अभयदान स्पष्ट झलकता है । पर्युषण पर्व के दौरान अहिंसा, जिन पूजा, जीवदया का विशेष ध्यान रखना चाहिये साथ ही मायामृषा वाद से बचना चाहिये । मानव देह का उपयोग धर्म आराधना में करते हुये जो अपने तन को तपा लेता है उसकी आत्मा निर्मल बन जाती है । जब काया निर्मल होगी तो आत्मा स्वतः ही निर्मल हो जायेगी । अहिंसा के बिना जीवन अधुरा है । भारत आर्य भूमि है यहां योग की प्रधानता है अनार्य देशों में भोग को प्रधानता दी गई है ।
दादा गुरुदेव की पाटपरम्परा के अष्ठम पट्टधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा., मुनिराज श्री पुष्पेन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री रुपेन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जनकचन्द्रविजयजी म.सा. आदि ठाणा एवं साध्वी श्री सद्गुणाश्री जी म.सा., साध्वी श्री संघवणश्रीजी म.सा., साध्वी श्री प्रमितगुणाश्री जी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में 700 आराधकों के साथ चातुर्मास 2018 चल रहा है । इस वर्ष पर्युषण पर्व का लाभ श्री पारसमलजी नेनमलजी संकलेचा मदुराई वालों को दिया गया ।
प्रवचन की गहुंली श्री भंवरलाल दरगाजी जोगाणी भीनमाल परिवार द्वारा की गई । पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन पीठिका पर अष्टान्हिका प्रवचन पोथी वोहराने का लाभ श्रीमती मंजु बेन महेन्द्र भाई शाह थराद वालों को प्राप्त हुआ । इसके पूर्व ज्ञान की अष्टप्रकारी पूजा श्रीमती चेतनाबेन हंसमुखलालजी वोहरा परिवार थराद की ओर से की गई तत्पश्चात् प्रथम वासक्षेप ज्ञान पूजा श्री भंवरलाल दरगाजी जोगाणी, द्वितीय ज्ञानपूजा श्री हीरालाल टी. मेहता, तृतीय ज्ञानपूजा श्री नवरत्नराज चुन्नीलालजी संघवी भूति, चतुर्थ ज्ञानपूजा श्रीमती शर्मिलाबेन चन्द्रकांतजी भायन्दर, पंचम ज्ञान पूजा श्रीमती पुष्पाबेन प्रवीणकुमारजी जैन भायन्दर द्वारा की गई । पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन चातुर्मासान्तर्गत होने वाले तपस्वीयों व अतिथियों का बहुमान करने का लाभ भूति निवासी श्री नवरत्नराज चुन्नीलालजी संघवी वेदमूथा परिवार द्वारा लिया गया । आज की संघपूजा का लाभ श्रीमती निर्मलादेवी भूरमलजी मुणत परिवार चैन्नई द्वारा लिया गया । प्रवचन पश्चात् प्रभुजी की आरती श्रीमती चेतना बेन हसमुख भाई थराद एवं दादा गुरुदेव की आरती का लाभ श्री नवरत्नराज चुन्नीलालजी संघवी वेदमूथा भूति द्वारा की गई । मंच संचालन श्री हेमन्त वेदमूथा ने किया एवं संगीत प्रस्तुति श्री भूपत खण्डेलवाल द्वारा दी गई । श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में चातुर्मास 2018 में वर्षीतप के आराधकों के साथ सिद्धितप, महामृंत्युजय मासक्षमण तप, 36 दिवसीय गुरुतप एवं सामुहिक अठ्ठाई तपस्या सहित कई तपस्याऐं चल रही है ।

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