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धुलेट – पाला गिरने से क्षेत्र में फसले हो रही चौपट, किसानो ने की मुआवजे की मांग

विनोद सिर्वी, धुलेट। भारत संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है, और सभी ग्रामीण समुदायों में अधिक मात्रा में कृषि कार्य किया जाता है इसी लिए भारत को भारत कृषि प्रधान देश की संज्ञा भी मिली हुई है। लगभग 70 प्रतिशत भारतीय लोग किसान हैं। वे भारत देश के रीढ़ की हड्डी के समान है। खाद्य फसलों और तिलहन का उत्पादन करते हैं। वे वाणिज्यिक फसलों के उत्पादक है। वे हमारे उद्योगों के लिए कुछ कच्चे माल का उत्पादन करते इसलिए वे हमारे राष्ट्र के जीवन रक्त है। भारत अपने लोगों की लगभग 60 प्रतिशत कृषि पर प्रत्यक्ष या पपरोक्ष रूप से निर्भर भारतीय किसान पूरे दिन और रात काम करते है। वह बीज बोते है और रात में फसलों पर नजर रखते भी है। वह आवारा मवेशियों के खिलाफ फसलों की रखवाली करते। और प्रतिवर्ष इस आस में फसल बोता है कि इस साल उससे अच्छा मुनाफा मिलेगा परंतु हर बार उसे विभिन्न संकटों से जूझने के बाद भी मुनाफा नहीं मिलता है यही हाल गांव धुलेट  व आस-पास के गांव पीपरनी, अमोदिया दलपुरा, गुमानपुरा, रिंगनोद, रतनपुरा, कंजरोटा आदि गांव के किसानों का है। इस बार भी गांव धुलेट सहित आसपास के विभिन्न गांव के के किसानों ने टमाटर मिर्च प्याज गोभी चना गेहूं की फसलें लगाई परंतु हर बार की तरह इस बार भी किसानों को खेती घाटे का सौदा ही हुई धुलेट के ज्यादातर किसान टमाटर की फसल पर आश्रित है जिन्होंने कड़ी मेहनत कर टमाटर की फसल लगाई। खाद, बीज, दवाई मैं अत्यधिक खर्च कर आस थी कि भाव अच्छे मिलेंगे। परंतु इस बार टमाटर की फसल ने किसानों को भारी नुकसान झेलने को मजबूर कर दिया। परंतु फिर भी किसानों को आशा थी कि आगे कुछ भाव मिलेगा। तो उनको घाटे की भरपाई हो जाएगी। किसानों को गेंदा फूल, गोभी, प्याज,सोयाबीन, मिर्ची आदि की फसलों में भाव ना मिलने की वजह से घाटा हुआ। अगस्त से 20 दिसंबर तक टमाटर के भाव 4 से 5 किलो तक रहे। अभी 8 दिनों से भाव में तेजी हुई। जिससे किसानों के चेहरों पर खुशी आ गई। परंतु 2 दिनों से पाला गिर रहा है। पाले की वजह से अधिकतर किसानों की फसलें चौपट हो चुकी है। पाला का प्रकोप सिर्फ टमाटर ही नहीं आलू, मटर, चना आदि फसलों पर भी अत्यधिक रहा। धुलेट के किसान नरसिंह सिंदडा ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में एक एकड़ में पपीता की फसल लगाई है। जो कि पाले की वजह से नष्ट हो गई है। पिपरनी के जगदीश सोलंकी ने बताया कि पाले का प्रकोप चने की फसल पर भी हुआ है। इससे उत्पादन में काफी फर्क पड़ेगा किसानों ने बताया कि पाले का प्रकोप इतना हुआ कि सागौन, मेहंदी, बारमासी आदि पेड़ों के पत्ते भी जल गए हैं।

धुलेट के किसान भेरूलाल चोयल ने बताया कि रात को गिर रहा पाला खेतों में उग रही सीजनल सब्जियों और फलों को चौपट कर रहा है। प्रकृति की इस मार से किसान सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं।  इन दिनों खेतों में सुबह दिखाई देने वाली सफेद चादर बर्फ की नहीं बल्कि पाले की है। रात को बर्फनुमा गिर रहा पाला खेती को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। ये पाला किसानों की सीजनल सब्जी, सीजनल फल और फसल को जलाने का काम कर रहा है। मेहनत की फसल को चौपट होते देख अब किसान सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। अमरसिंह चौधरी भेरूलाल सेप्टा, अमर सिंह काग, फूलचंद राठौर, हरिराम काग, नरसिंह सिंदडा, मुकेश लछेटा, इंदरमल हामड, गोकुल चौधरी, मोहनलाल नागोरा, मोहनलाल सतपुड़ा, गोमालाल काग, वर्दी चंद्र राठौर, रविंद्र गेहलोत, भरत सेंचा, गोविंद बर्फा करनावद, लक्ष्मण कोटवाल अमोदिया, संतोष सैंचा कंजरोटा,नेमालाल चोयल, आदि ने कहा इस बार कम बारिश की वजह से किसान परेशान हुए। जैसे-तैसे कर फसलों को सिचा और अब पाला गिरने से फसलों का नुकसान हो रहा है। किसान को विभाग द्वारा फसल मुआवजा दिया जाए। ताकि किसानों को उसकी लागत मिल सके। किसानों ने विभाग से जल्द ही सर्वे कर फसल बीमा देने की मांग करी।
ग्रामीण उद्यानिकी विभाग अधिकारी अजीत द्विवेदी ने बताया कि किसानों द्वारा हमें सूचना मिली थी हमने किसान के खेतों में जाकर निरीक्षण किया व पाले से बचने के उपाय भी किसानों को बताए है
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी संतोष एस्के ने बताया कि हमने खेतों पर जाकर किसानों को पाली से बचने की समझाइश की है और ऊपर के अधिकारियों को अवगत करा दिया है।
कृषि विज्ञान केन्द्र धार , के पौध संरक्षण विशेषज्ञ डाँ.जीएस गाठिये ने बताया कि मौसम की वर्तमान स्थिति में तेजी से गिरते तापक्रम के कारण पाला पडऩे की सम्भावना बढ़ गई है पाला पडऩे के लक्षणों में जब शाम को आसमान साफ हो, हवा बंद हो, एवं तापमान कम हो इत्यादि होता है। पाले से प्रमुख रूप से अरहर, मसूर, टमाटर, आलू एवं सब्जी वर्गीय फसलें प्रभावित होती है।

पाले लगने के लक्षण का आभास होते ही तुरंत फसलो को पाले से बचाने हेतु निम्नांकित उपाय अपनायें।फसलों को स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई करना चाहिये जिससे भूमि का तापक्रम ज्यादा नहीं गिरेगा एवं वातावरण में आर्द्रता बनी रहने के कारण पाले का ज्यादा प्रभाव नहीं होगा।पाला पडऩे की सम्भावना को दृष्टिगत करते हुये आधी रात के बाद भोर में 4ः30 बजे  खेत के चारो ओर कूड़ा-करकट जला कर धुॅआ कर देना चाहिये।इससे तापक्रम ज्यादा नहीं गिरता क्योंकि धुएं का आवरण छा जाने से पाला का असर फसल पर नहीं पड़ता। फल वृक्षों (पपीता, आम इत्यादि) के छोटे पौधे को घास फूस अथवा पुआल से ढ़ककर पाले से बचाया जा सकता है।

पाला पडऩे की सम्भावना होने से फसल पर 0.1-0.3 प्रतिशत वाले सल्फर का छिड़काव करना चाहिये। यह छिड़काव फसल में 5 प्रतिशत से अधिक फूल आने पर करने से फसल को काफी लाभ रहता है।इसके अतिरिक्त साइकोसिल नामक दवा का भी 0.1 से 0.15 प्रतिशत घोल का छिड़काव भी लाभप्रद रहता है। जब पाला पडऩे की पूरी सम्भावना दिखाई दे तो डाईमिथाइल सल्फोआक्साइड नामक रसायन की 75 ग्राम दवा को 750 लीटर पानी में घोल बनाकर 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने से फसल पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता। यह रसायन फसल की कोशिका भित्ती के पानी को आर-पार करने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधा मरता नहीं। सल्फर डस्ट का 8-10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से बुरकाव करना लाभप्रद रहता है. अथवा थायोयूरिया की 7-8 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिये. पाला लग जाने के उपरान्त तुरंत सादा ग्लूकोज की 25-30 ग्राम मात्रा का प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करने से फसलो में सुधार होता है। एन के पनीका तहसीलदार सरदारपुर से इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा कि ठिक है। मैं दिखवाता हूँ।

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