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सरदारपुर – झिर्णेश्वर महादेव का पर्यटन स्थल के रूप में विकास हो तो निखरेगा प्राचीन वैभव, पदमाकर जलाधारी शिवलिंग है अद्वितीय, श्रावण मे उमड़ता है श्रद्धालुओ का सैलाब

आरिफ शेख/रमेश प्रजापति 
सरदारपुर। सरदारपुर तेहसील प्राचीन एंव पुरातात्वीक धरोहरो से पटा हुआ है। कई धार्मिक स्थान लोकप्रिय होकर अतिप्राचीन है। लेकीन इन स्थानो का विकास समय के अनुरूप नही हो पाया है। मॉ माही का उद्गम स्थल मिंडा हो ,रूकमणी हरण स्थल अमका-झमका हो, जैन तीर्थ मोहनखेडा और भोपावर हो या फिर झिर्णेश्वर महादेव मंदिर या जंयतिधाम तिर्थ क्षैत्र हो। तहसील क्षैत्र मे इन धार्मिक स्थलो पर पर्यटन क्षैत्र के रूप मे विकसीत करने की अपार संभावनाये है। लेकीन इन स्थानो पर विकास कार्य नही हो पाया। जिससे आने वाले श्रद्धालुओ को परेशानी का सामना करना पडता है। जरूरत है एक सकारात्मक पहल की ताकी सरदारपुर तेहसील के ये प्राचीन और धार्मिक स्थल पर्यटन के क्षैत्र मे विकसीत हो सके।
आज हम पाठको को नगर से 2 किमी दुर अति प्राचीन झिर्णेश्वर महादेव मंदिर के प्राचीन विभाग से रूबरू करवा रहे है। डेढ दशक पुर्व तक तो यह स्थान गुप्त ही था। लेकीन यहा पर स्थित प्राचीन पदमाकार जलाधारी शिवलिंग का पता  कुछ भक्तो को चला तो उन्होने इसे विकसीत करने का बिडा उठाया। और देखते ही देखते झिर्णेश्वर महोदव का वैभव क्षैत्र मे फैल गया।  सरदारपुर-भोपावर मार्ग के समिप मोक्ष दायिनी पवित्र माही नदी के तट पर स्थित प्राचीन श्री झिर्णेश्वर महोदव धाम क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। माही नदी के किनारे बसा झिर्णेश्वर धाम एक दार्शनीक स्थल है, यहां आने वाले हर शिव भक्त को एक अलग ही सुकुन महसुस होता है।

यहां काले पत्थर से निर्मित लगभग 4 फीट उंचा शिवलिंग है जो अपनी विश्ष्टि गोल जलाधारी में स्थित है। ऐसा दुर्लभ शिवलिंग शायद ही कही देखने को मिलता है। झिर्णेश्वर धाम के बारे में बताया जाता है कि जब पाण्डव अज्ञातवास में थे तब वें यही से गुजरे थे इसी दौरान उन्होंने यहां भगवान शिव की आराधना करने हेतु शिवलिंग की स्थापना की थी। हालांकी इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख नही है पर इस बात को लेकर यहां आसपास बसे लोगो में काफी मान्यताएं है।

झिर्णेश्वर के झरने ने वर्षो तक बुझाई नगर की प्यास –
झिर्णेश्वर धाम पर स्थित मिठा झिरा बरसो तक सरदारपुर नगर की प्यास बुझाता रहा है। अपनी विशिष्ठ संरचना के लिए प्रसिद्ध यह झिरा अंग्रेजो के द्वारा निर्मित किया गया था। जिसका शुद्ध पानी बगैर किसी पम्प के यहां से स्वतः ही पाईप लाईन द्वारा सरदारपुर स्थित टंकी तक पहुंचता रहा है। लेकिन उचित रख रखाव एवं गिरते जल स्तर के कारण अब खत्म सा होता जा रहा है। इस झिरे से संभवतः ऐसा माना जा सकता है कि झिरे की कारण ही यहां स्थित महादेव का नाम झिर्णेश्वर महोदव रखा गया है।

बाढ आने पर भी नही ढुबता है शिवलिंग –
पुराने अनसुनी बातों की माने तो यह स्थान अपने आप में कई चमत्कारों को समेटे हैं। बताया जाता है कि वर्षाकाल में जब भी यहां नदी में बाढ़ आती है तब यह पुरा क्षैत्र जलमग्न हो जाता है। लेकिन आजतक इस शिवलिंग को डुबते किसी ने नही देखा है। बाढ़ का पानी इस शिवलिंग के आस-पास से नाव की शक्ल से निकल जाता है तथा शिवलिंग स्पष्ट दिखाई देता है। यहां भक्त अपनी मनोकामना लिए झिर्णेष्वर महादेव की शरण में आते है और महादेव उनकी मनोकामना जल्द ही पुरी कर देंते है।

झिर्णेश्वर धाम के बारे में बताया जाता है कि कई वर्षो पूर्व ग्यारहनन्दी महाराज के द्वारा यहां पर एक बड़ी गौशाला की स्थापना की थी तथा बड़े-बड़े हवन यज्ञ आदी हुआ करते थे। बताया यह भी जाता है कि कभी यहां पर अंग्रेजो की छावनी थी एवं यहां अंग्रेज पलटन निवास करती थी। घाटी के उपर बस्ती थी एवं नदी के किनारे हाट बाजार लगा करते थे। यही पर हनुमानजी का एक प्राचिन मंदिर भी स्थित है जो जीर्ण शीर्ण सा हो रहा था। जिसका जिर्णाद्धार किया जा रहा है।
झिर्णेश्वर धाम पर शिवरात्री को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है साथ ही मेले का आयोजन भी किया जाता है। यहां लोग पिकनीक मनाने भी आते है। शिवरात्री पर विशेष पुजा भी होती है। सोमवती अमावस्या को श्रद्धालु स्नान भी करते है। आज भी यहां सन्यासी गोविंद महाराज की समाधी है जिनके द्वारा तिर्थ जिर्णोद्धार का सपना देखा गया था।


खराब सडक करते ही श्रद्धालुओ को परेशान – 
झिर्णेश्वर महादेव मंदिर पहुॅच मार्ग सरदारपुर -भोपावर से लगता हुआ। मंदिर तक पहुॅचने के लिये कुछ वर्ष पुर्व मनरेगा योजना मे बना कच्चा मार्ग अब खराब होने लग चुका है। विशेषकर बारिश के समय मे तो मंदिर तक पहुॅचने की डगर कठिन हो जाती है। वही बीच नदी मे तेज बारिश के समय मंदिर तक पहुॅचने के लिये श्रद्धालुओ को जान जोखिम मे डालकर निकलना पडता है। यदि मार्ग को पक्का बनाने के साथ ही नदी पर स्टॉपडेम कम पुलिया का निर्माण हो जाये तो श्रद्धालुओ को होने वाली परेशानी से निजात मिल जायेगी।

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