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पेटलावद – रायपुरिया में गल चूल मेले का हुआ आयोजन, मन्नतधारियो ने उतारी मन्नते, दहकते अंगारों पर चले मन्नतधारी

आयुषी कुशाल राठौड़, पेटलावद। समीप गांव रायपुरिया गांव में दुलेंडी के दिन गल का आयोजन किया गया। संस्कृति समाज का दर्पण होती है। हमारे जिले की पूरातन आदिवासी संस्कृति में पर्वो के साथ ही मन्नतों का भी प्रचलन प्राचिन परंपरा का हिस्सा रहा है। यहां के आदिवासी समाज की अपनी एक अलग ही दुनिया है। उनकी इसी दुनिया में ऐसी कई परंपराएं हैं जो हैरान कर देती हैं। बुधवार को होलिका दहन के साथ ही जहां भगोरिया पर्व को विराम लग गया वही आज धुलेंडी के अवसर पर अंचल में गल घुमने का पर्व मनाया गया जहां ढोल, मांदल की थाप के साथ ही सैकडो की संख्या में ग्रामीण गल घुमने की परंपरा को देखने को एकत्रित हुये। गल घुमने की इस परंपरा के बारे में जिसमें मन्नत पूरी होने पर आदिवासी गले और कमर के बल लटककर देवता का शुक्रिया अदा करते हैं।

क्या है गल घूमने की परंपरा –
गल घूमने की ये परंपरा झाबुआ और अलीराजपुर के आदिवासियों में प्रचलित है। होली के पूर्व आदिवासी समाज गल नामक देवता की पूजा करते हैं और देवता से बच्चे की शादी, जन्म, किसी बीमारी से मुक्ति आदि की मन्नत मांगते हैं। आदिवासी समाज के आस्था के केन्द्र एवं जन जन मे बडवा के नाम से पुकारे जाने वाले के मुताबिक मन्नत मांगते समय व्यक्ति ये वचन देता है कि मन्नत पूरी होने पर वो 5, 7 या 11 बार गल घूमेगा। भगवान से मांगी गई मन्नत के पूरी होने पर गल घूमने की परंपरा निभाई जाती है।

कैसे घूमते हैं गल –
गल घूमने वाले बाबू भाई खेड़ा वाले बताया कि एक 30 से 40 फीट ऊंचा मचान बनाया जाता है। इस पर खाट रखकर क्रेन के जैसा झूला लगाया जाता है। मन्नतधारी को उसके परिजन रंगीन कपडे और पगड़ी पहनाकर गीत गाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं। यहां तड़वी यानी पुजारी पहले उससे पूजा करवाता है फिर उसे मचान पर चढ़ाकर झूले पर उलटा लटका देता है। इसके बाद झूले के दूसरे हिस्से पर टंगी रस्सी से लटकाकर लोग झूलते हैं और दूसरी तरफ उलटा लटका हुआ मन्नतधारी आसमान में झूलता रहता है। चक्कर पूरे होने पर तड़वी फिर उससे पूजा करवाता है और यदि उसने मन्नत में बलि देने का वादा किया है तो बलि भी चढ़ावाता है।

मन्नतधारी जमीन और आसमान के देवता को खुश करने के लिए घूमते हैं गल –
ये परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां के आदिवासी समाज को ये भरोसा है कि उनका देवता जमीन और आसमान दोनों पर राज करता है। इसलिए उसे खुश करने के लिए ये लोग जमीन और आसमान के बीच घूमते हैं। सिर पर पीली पगड़ी, शरीर पर लाल कपड़ा और सफेद धोती पहने मन्नतधारी 40 फीट ऊंचे गल पर कमर के बल झूलते हुए गल देवता का नारा लगाया और मन्नत पूरी की जाती है। किसी के गल देवता की मन्नत के बाद संतान हुई थी तो कोई बीमारी से चंगा हुआ। मन्नतधारी मचान के नीचे खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे।
विवाहित ही उतार सकता है मन्नत –
मान्यता है मन्नत विवाहित व्यक्ति ही उतार सकता है, इसलिए बहुत से मन्नतधारियों के परिजनो द्वारा परंपरा का निर्वहन किया गया।

दहकते अंगारो पर 7 फिट चूल में चले श्रद्धाल –
गाँव रायपुरिया में धहकते हुए अंगारों पर मन्नत पूरी होने पर महिलाएं चूल पर चलती है।
करीबन चूल 7 फ़ीट की होती है। चूल पर चलने वाली महिला सुशीलाबाई पंवार ने बताया कि मेरी लड़की की शादी हुए करीबन 8 वर्ष हो गए थे उसकी गोद सुनी थी। हमने बड़े -बड़े अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन उसके बाद भी कुछ हल नही निकला तो मुझे किसी ने बताया कि आप चूल माता की मन्नत ले लो आपकी मनोकामना पूरी होगी तो मैने बीते वर्ष चूल माता के सामने मन्नत ली थी कि मेरी बेटी को संतान प्राप्ति होने पर मैं दहकते हुए अंगारो पर चलूंगी। चूल माता ने मेरी मनोकामना पूर्ण की ओर 2 माह पहले मेरी लड़की को प्रथम संतान के रूप में लड़का हुआ। चूल के दौरान काफी भीड़ थी।

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