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रायपुर – अभ्यारणों में वन्य प्राणियों को गर्मी से बचाने पानी और चारे सहित किए गए अन्य उपाय, वन विभाग द्वारा वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए किए गए इंतजाम

रायपुर। वन्य प्राणियों को करंट आदि सुरक्षा के लिए वन विभाग द्वारा पानी और चारे सहित अन्य आवश्यक व्यवस्था की जा रही है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि वन्य प्राणियों के रहवास स्थानों के आस-पास कम से कम एक जलस्त्रोत उपलब्ध रहे यह सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके अलावा विभाग के मैदानी अमलों के साथ ही आस-पास के ग्रामीण को भी वन्य प्राणियों की सुरक्षा, अवैध रूप शिकार आदि घटनाओं को रोकने के बारे में जागरूक कर उनका सहयोग लिया जा रहा है। श्री चतुर्वेदी ने बताया कि गर्मी में पेयजल भोजन की कमी के कारण वन्य जीव अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं, जिसके कारण कई बार वन्य प्राणियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए वन विभाग, द्वारा वन्य प्राणियों को ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में कवर्घा जिले के भोरम देव अभ्यारण्य से भटकर आबादी क्षेत्रों में जाने और करंट से मृत्यु के संबंध में कहा कि वन्य प्राणियों की मृत्यु न केवल वन विभाग के लिए क्षति है बल्कि इससे पूरा पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होता है। ग्रामीणों द्वारा भी वन्य प्राणियों को बचाने के लिए कई बार संवेदनशील प्रयास किए जाते हैं, जो सराहनीय है। छत्तीसगढ़ राज्य में वन्य प्राणियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए 14 संरक्षित क्षेत्र बनाये गये हैं जिसमें 3 टायगर रिजर्व, 2 राष्ट्रीय उद्यान तथा 8 अभ्यारण्य गठित हैं। इसके अतिरिक्त मुंगेली एवं बिलासपुर जिले में 01 बायोस्फियर रिजर्व अचानकमार-अमरकंटक अधिसूचित है। राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग कि.मी. है। प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 11,310.977 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के कुल वनक्षेत्र 59,772 वर्ग किलोमीटर का 18.92 प्रतिशत है। यह राज्य के कुल कार्य योग्य वन क्षेत्रफल का लगभग 20 प्रतिशत है। संरक्षित क्षेत्रों में वन्यप्राणियों की पेयजल व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने हेतु विगत 10 वर्षों में तालाब निर्माण, स्टॉप डेम, एनीकट, बोल्डर चेकडेम, वॉटरहोल, सॉसरपीट, झिरिया, गहरीकरण कार्य, प्राकृतिक जलस्रोतों का विकास से संबंधित लगभग 780 कार्य कराये गये हैं, जिनसे वन्यप्राणियों को पेयजल प्राप्त होता है।  प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में वित्तीय वर्ष 2018-19 में वन्यप्राणियों की पेयजल व्यवस्था सुदृढ़ किये जाने हेतु 23 नग एनीकट निर्माण, 08 नग झिरया, 02 नग मिट्टी बंधान, 18 नग प्राकृतिक जलस्रोतों का विकास, 17 नग सॉसरपिट सोलर पंप सहित, 38 नग स्टॉपडेम, 10 नग वॉटरहोल, 02 नग चेकडेम, 49 नग तालाब निर्माण, 22 नग तालाबों का गहरीकरण कार्य किया गया है, जिसमें कुल 20.74 करोड़ रूपये की लागत आई है। इसके अलावा भोरमदेव अभ्यारण्य में 100 नग अस्थाई वॉटरहोल निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति से तत्काल निपटने हेतु विभागीय मैदानी अमलों को त्वरित कार्यवाही किये जाने के निर्देश दिये गये हैं। वर्तमान वित्तीय 2019-20 में भी वन्यप्राणी संरक्षित क्षेत्रों में वॉटरहोल स्ट्रक्चर को सुदृढ़ किये जाने हेतु कार्य कराये जा रहे हैं।

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