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धुलेट – मारवाड़ा- मेवाड़ा प्रजापत समाज द्वारा आयोजित भागवत कथा में तीसरे दिन पं. शर्मा ने कहाँ – मां एक ऐसी छाया है जिसके बिना शीतलता अधूरी है

 विनोद सिर्वी, धुलेट। 9 महीने तक ‘गर्भ’ में आश्रय देने वाली है ‘मां’, अपने तन से, मेरा तन बनने तक, पोषित करने वाली है मां, अपनी आंखों से ‘दुनिया’ और ‘दस्तूर’ को दिखाने वाली है मां, रक्त के कण-कण में विसर्जित है जिसकी ममता वो जीवनदायिनी-जीवनवाहिनी देवी है। जिसकी ममता का न कोई फार्मूला है, न सूत्र है वो पावनी है ‘। मां जल है, पवन है, धरती है, आग है, आकाश है, अपने आप में ‘पंचतत्व’ हैं जिनके बिना ‘जीवन’ अपूर्णनीय और असंभव है। मां एक ऐसी ‘छाया’ है जिसके बिना ‘शीतलता’ अधूरी है। एक ऐसी ‘माया’ है जिसके बिना संपूर्ण ‘ऐश्वर्य’ और धन अधूरा है। संतान की वो मजबूत नींव है जिसके ऊपर वो अपने जीवन-चक्र की इमारत का निर्माण करता है। जीवन में ‘माँ’ का स्थान ‘ऑक्सीजन’ से कम नहीं है, तू कितनी अच्छी है उक्त बात पंडित प्रवीण जी शर्मा बड़ा बडदा वालों ने मारवाड़ा मेवाड़ा प्रजापत समाज द्वारा आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन कही तू कितनी अच्छी है तू कितनी प्यारी है ओ मां ओ मां इस भजन पर श्रोताओं की आंखों से आंसू आ गए। भागवत कथा में भक्त प्रहलाद की कथा सुनाई गई पंडित शर्मा ने कहा कि भक्तों को भगवान के श्री चरणों में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित किया। कहा कि प्रह्लाद ने एक कुम्हार के घर में जाकर देखा कि वह राम नाम जप रहा था तो उन्होंने उससे पूछा- हे बाबा क्या तुम्हें मेरे पिता का डर नहीं है।

आपको पता है कि मेरे पिता राम के विरोधी हैं और तुम बिना रुके राम नाम जप कर रहे हो। इस पर कुम्हार ने कहा कि हे बालक मैं राम नाम इसलिए जप रहा हूं कि मैं जिस समस्या में हूं, इससे केवल भगवान राम ही मुझे बचा सकता है। तब भक्त प्रह्लाद ने कुम्हार की बात का अनुसरण कर भगवान की भक्ति प्रारंभ करें और नरसिंह भगवान का अवतार हुआ हमें अपने मानव जीवन का सदुपयोग करना चाहिए यह तन एक प्रकार का सोने का बर्तन है जिसमें पकवान रखने पर सोने की अहमियत को पकवान की अहमियत और बढ़ जाती है परंतु इसी सोने के बर्तन में यदि मांस मदिरा रख दिया जाए तो सोने की अहमियत घट जाती है इसी प्रकार हमारा मानव जीवन मैं इस शरीर का उपयोग सही कामों में किया जाए ताकि इसका सदुपयोग हो सके संगीतमय भागवत कथा मैं भजनों पर श्रोताओं द्वारा नृत्य किए जाते हैं व प्रतिदिन महा आरती के बाद महाप्रसादी का आयोजन किया जाता है।

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