धार। आज स्वास्थ्य के क्षेत्र में विश्वव्यापी संक्रामक कोरोना महामारी हमारे सामने ऐसा तांडव कर रही है, जिसकी कल्पना शायद ही इस प्रगतिशील विश्व ने की हो। कोरोना महामारी ने मानव के दैनिक जीवन के प्रत्येक पक्ष को व अर्थव्यवस्था को इतना नुकसान पहुंचाया है। जितना शायद ही किसी अन्य महामारी ने पहंुचाया हो। फिर भी यह अन्य विश्वव्यापी महामारियां अपने समय में मानव समुदाय के लिए खतरनाक ही रही है। जैसे- 1847-48 में एन्फ़्लुएन्जा, 1855-60 में बुडानिक प्लेग, 1889-90 में एन्फ़्लुएन्जा, 1915-26 में एनसेफेलिटिस लेथेर्जीका, 1918-20 में एन्फ़्लुएन्जा ए एच1 एन1, 1957-58 में एन्फ़्लुएन्जा ए एच2 एन 2, 1961-75 में कालेरा, 1877 से 1977 स्माल्पाक्स, 1986-70 में एन्फ़्लुएन्जा ए एच3 एन2, 1981-2018 में एच आई व्ही/एड्स, 2002-04 में सार्स (सिवियर एक्यूट रेसिपिरेटरी सिंड्रोम), 2009 में मम्पस, 2009-10 में एन्फ़्लुएन्जा ए एच1 एन, 2012 से अभी तक मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, 2013-16 में इबोला वायरस और 2015-16 में जीका वायरस ने अपना प्रभाव दिखाया था।
संगत नामक संस्था के दिनेश चाँदके ने बताया कि आधुनिकता के इस समय में औद्योगिक, शैक्षणिक, कृषि, खेल, स्वास्थ्य आदि को भूमंडल में बढ़ावा देने वाला विश्वव्यापी समुदाय आज कोरोना महामारी की चपेट में है । जिसका प्रमुख्य रूप से इसके बारे में कोई ठोस वैज्ञानिक जानकारी का उपलब्ध न होना और सामुदायिक स्तर पर इसके प्रभाव का सटीक आंकलन नहीं कर पाना इसके मुख्य कारण थे। लेकिन जब तक कई देशों ने इसकी गंभीरता को समझा तब तक बहुत देर हो चुकी थी और तब तक यह महामारी अपने पैर पसार चुकी थी । जबकि तात्कालीन समय में दुनिया के बड़े-बड़े डॉक्टर्स और वैज्ञानिक शोध कार्य में जुटे हुए है ,लेकिन अभी तक इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं होने से समुदाय स्तर में इसकी संक्रामकता के फैलाव को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती तो है। साथ ही इससे उत्पन्न होने वाली अन्य सामाजिक और मानसिक समस्याओं को संभालना भी एक बड़ी चुनौती है।
भारत सरकार ने भी कहा कि लॉक डाउन नहीं होता तो 30 लाख मरीज होते और 2.1 लाख जाने चली जाती। यह अत्यंत जरूरी तो था, लेकिन इतने लंबे लॉकडाउन से समुदाय में रोजगार की समस्याएं, मजदूरों की घर वापसी की समस्याएं, शिक्षा की समस्याएं, परिवहन की समस्याएं, खान-पान व रहन-सहन की समस्याएं, स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हुई। कोरोना के भय से तनाव एवं भेदभाव, चिंता व अन्य प्रकार की बुजुर्गों संबंधित स्वास्थ्य समस्यायें आदि कई प्रकार की मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। जिनमें मानसिक तनाव और अवसाद होना बहुत आम बात है । स्वास्थ्य की देखभाल के साथ ही इन परिस्थितियों से उत्पन्न मानसिक तनाव और अवसाद को पहचानना और इससे निपटने के लिए व्यक्ति को मनो सामाजिक सहयोग एवं परामर्श देना भी स्वास्थ्य सेवा का एक हिस्सा है।
ऐसी स्थिति में संगत संस्था द्वारा क्रियान्वित एसेंस परियोजना में मानसिक तनाव (अवसाद) के लिए बनाया गया “स्वास्थ्य गतिविधि कार्यक्रम” (हेल्दी एक्टिविटी प्रोग्राम) जो कि मानसिक तनाव और अवसाद का संक्षिप्त मनोवैज्ञानिक उपचार है । यह उपचार सात से आठ परामर्श सत्रों में दिया जाता है और इस उपचार को पूरा करने में तीन से चार माह का समय लगता है। यह उपचार फिल्ड स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जा सकता है । इस मनोवैज्ञानिक उपचार का डिजिटल प्रशिक्षण एसेंस परियोजना द्वारा बनाया गया है जो कि यह डिजिटल प्रशिक्षण के तौर-तरीको पर शोध आधारित है। जिसका प्रमुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करना है। प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात क्षेत्रिय स्तर पर उपलब्ध आशा, स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक, एएनएम और नर्स के समन्वयन से समुदाय स्तर पर रोगी को परामर्श प्रदान कर सकती है। परामर्श देकर रोगी के मानसिक तनाव का समाधान कर सकती है या आवश्यकतानुसार संबंधित व्यक्ति को स्वास्थ्य केंद्र पर भेज सकती है।
वर्तमान समय में जब आमने-सामने का प्रशिक्षण एन चुनौती बना हुआ है। तब समुदाय स्तर पर मानसिक तनाव और अवसाद के उपचार के लिए बनाया गया यह डिजिटल प्रशिक्षण एक कारगर उपाय और मील का पत्थर साबित हो सकता है। क्योंकि यह डिजिटल प्रशिक्षण पूरी तरह मोबाइल एप एवं सरल भाषा में बनाए गए विडियो के माध्यम से दिया जाता है। जो कि गांव की आशा, क्षेत्र में ही रहकर अपने ही गांव के रोगियों को परामर्श दे सकती है। यह एसेंस संदर्भित डिजिटल प्रशिक्षण जो कि आर्थिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण तो होगा ही। साथ ही सामुदायिक स्तर पर उपलब्ध भी हो सकेगा। उक्त लेख में एसेंस टीम द्वारा मार्गदर्शन और सहयोग किया गया है।